अव्यय/Avyay (Indeclinables) परिभाषा :
ऐसे शब्द जिनमें लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि के कारण कोई विकार नहीं आता, अव्यय/Avyay कहलाते हैं।
ये शब्द सदैव अपरिवर्तित, अविकारी एवं अव्यय/Avyay रहते हैं। इनका मूल रूप स्थिर रहता है, कभी बदलता नहीं ।
अव्यय /Avyay का शाब्दिक अर्थ है – ‘अ + व्यय’; जो व्यय न हो उसे अव्यय कहते हैं, इसे अविकारी शब्द भी कहते हैं क्योंकि इसमें किसी प्रकार का विकार नहीं हो सकता, ये सदैव समान रहते हैं। संस्कृत में इसे इस प्रकार पारिभाषित किया गया है –
“सदृशं त्रिषु लिंगेषु सर्वाषु च विभक्तिषु।
वचनेषु च सर्वेषु यन्नं व्ययति तदव्ययम्।।”
अर्थात् जो तीनों लिंगों में, सभी विभक्तियों में और सभी वचनों में समान रहे और जिसका व्यय न होता हो, उसे ‘अव्यय’/Avyay कहते हैं।
जैसे — आज, कब, इधर, किन्तु, परन्तु, क्यों, जब, तब, और, अतः, इसलिए आदि ।
अव्यय/Avyay के भेद :
अव्यय/Avyay के चार भेद बताए गए हैं :
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क्रिया विशेषण (Adverb)
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सम्बन्धबोधक, (Post Position)
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समुच्चयबोधक, (Conjunction)
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विस्मयादिबोधक (Interjection)
(1) क्रिया विशेषण :
जो शब्द क्रिया की विशेषता बतलाते हैं, उन्हें क्रिया विशेषण कहा जाता है। क्रिया विशेषण को अविकारी विशेषण भी कहते हैं; जैसे – धीरे चलो। वाक्य में ‘धीरे’ शब्द ‘चलो क्रिया की विशेषता बतलाता है अतः ‘धीरे’ शब्द क्रिया विशेषण है। इसके अतिरिक्त क्रिया विशेषण दूसरे क्रिया विशेषण की भी विशेषता बताता है; जैसे — वह बहुत धीरे चलता है। इस वाक्य में बहुत’ क्रिया विशेषण और यह दूसरे क्रिया विशेषण ‘धीरे’ की विशेषता बतलाता है।
अर्थ के आधार पर क्रिया विशेषण चार प्रकार के होते हैं :
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कालवाचक (Adverb of Time)
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स्थानवाचक (Adverb of Place)
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परिमाणवाचक (Adverb of Quantity)
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रीतिवाचक (Adverb of Manner)
- स्थानवाचक (Adverb of Place) : जिन शब्दों से क्रिया में स्थान सम्बन्धी विशेषता प्रकट हो, उन्हें स्थानवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं;
स्थितिवाचक | यहाँ, वहाँ, भीतर, बाहर। |
दिशावाचक | इधर, उधर, दाएं, बाएं। |
- कालवाचक (Adverb of Time) : जिन शब्दों से क्रिया में समय सम्बन्धी विशेषता प्रकट हो, उन्हें कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं;
समयवाचक | आज, कल, अभी, तुरन्त |
अवधिवाचक | रात भर, दिन भर, आजकल, नित्य |
बारंबारतावाचक | हर बार, कई बार, प्रतिदिन |
- परिमाणवाचक (Adverb of Quantity) : जिन शब्दों से क्रिया का परिमाण (नाप-तौल) सम्बन्धी विशेषता प्रकट होती है उन्हें परिमाणवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं;
अधिकताबोधक | बहुत, खूब, अत्यन्त, अति |
न्यूनताबोधक | जरा, थोड़ा, किंचित्, कुछ। |
पर्याप्तिबोधक | बस, यथेष्ट, काफी, ठीक |
तुलनाबोधक | कम, अधिक, इतना, उतना |
श्रेणीबोधक | बारी-बारी, तिल-तिल, थोड़ा-थोड़ा |
- रीतिवाचक (Adverb of manner): जिन शब्दों से क्रिया की रीति सम्बन्धी विशेषता प्रकट होती है उन्हें रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे – ऐसे, वैसे, कैसे, धीरे, अचानक, कदाचित्, अवश्य, इसलिए, तक, सा, तो, हाँ, जी, यथासम्भव।
रीतिवाचक क्रिया विशेषणों की संख्या बहुत बड़ी है। जिन क्रिया विशेषणों का सामवेश दसरे वर्गों में नहीं हो सकता, उनकी गणना इसी में की जाती है। रीतिवाचक या क्रिया विशेषण को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है –
प्रकार | ऐसे, कैसे, वैसे, मानों, अचानक, धीरे-धीरे स्वयं, परस्पर, ” आपस में, यथाशक्ति, फटाफट, झटपट, आप ही आप इत्यादि। |
निश्चय | नि:सन्देह, अवश्य, बेशक, सही, सचमुच, जरूर, अलबत्ता, दरअसल, यथार्थ में, वस्तुतः इत्यादि |
अनिश्चय | कदाचित्, शायद, सम्भव है, हो सकता है, प्रायः यथासम्भव इत्यादि। |
स्वीकार | हाँ, हाँ जी, ठीक, सच आदि। |
निषेध | न, नहीं, गलत, मत, झठ आदि। |
कारण | इसलिए, क्यों, काहे को आदि। |
अवधारण | तो, ही, भी, मात्र, भर, तक, आदि। |
(2) सम्बन्धबोधक:
जो अव्यय किसी संज्ञा के बाद आकर उस संज्ञा का संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाते हैं, उन्हें संबंध बोधक कहते हैं। जैसे –
- वह दिन भर काम करता रहा।
- मैं विद्यालय तक गया था।
- मनुष्य पानी के बिना जीवित नहीं रह सकता।
सम्बन्धबोधक अव्ययों के कुछ और उदाहरण निम्नवत् हैं –
अपेक्षा, समान, बाहर, भीतर, पूर्व, पहले, आगे, पीछे, संग, सहित, बदले, सहारे, आसपास, भरोसे, मात्र, पर्यन्त, भर, तक, सामने ।
सम्बन्धबोधक अव्ययों का वर्गीकरण तीन आधारों पर किया गया है
(क) प्रयोग के आधार पर
(ख) अर्थ के आधार पर
(ग) रूप या व्युत्पत्ति के आधार पर
(क) प्रयोग के आधार पर सम्बन्धबोधक अव्यय का प्रयोग तीन प्रकार से होता है।
- विभक्ति सहित : जिन अव्ययों का प्रयोग कारक विभक्तियों (ने, को, से आदि) के साथ होता है उन्हें विभक्ति सहित सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे—यथा, पास, लिए आदि।
- विभक्ति रहित : जिस अव्ययों का प्रयोग बिना कारक विभक्तियों के होता है उसे विभक्ति रहित सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं; | जैसे—रहित, सहित आदि।
- उभयविधि : जिस अव्ययों का प्रयोग विभक्ति सहित और विभक्ति रहित दोनों प्रकार से होता है, उसे उभयविधि सम्बन्धबोधक कहते हैं; जैसे—द्वारा, बिना आदि।
(ख) अर्थ के आधार पर अर्थ के आधार पर अव्यय आठ प्रकार के होते हैं।
कालवाचक, स्थानवाचक, दिशावाचक, साधनवाचक, कारणवाचक, सादृश्यवाचक, विरोधवाचक, सीमावाचक।
- कालवाचक : जिन अव्ययों शब्दों से ‘समय’ का बोध होता है, उन्हें कालवाचक सम्बन्धबोधक अव्यय’ कहते हैं; जैसे-आगे, पीछे, बाद में, पश्चात्, उपरान्त इत्यादि।
- स्थानवाचक : जिन अव्ययों शब्दों से स्थान का बोध हो उन्हें स्थानवाचक सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे-आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, सामने, निकट, भीतर इत्यादि।
- दिशावाचक : जिन अव्ययों शब्दों से किसी ‘दिशा’ का बोध होता है, दिशावाचक सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे-ओर, तरफ, आसपास, प्रति, आर-पार इत्यादि।
- साधनवाचक : जिन अव्ययों शब्दों से किसी साधन’ का बोध होता है, उन्हें साधनवाचक सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे–माध्यम, मार्फत, द्वारा, सहारे, जरिए इत्यादि।
- कारणवाचक : जिन अव्ययों शब्दों से किसी कारण’ का बोध होता है, उन्हें कारणवाचक सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे—कारण, तु, वास्ते, निमित्त, खातिर इत्यादि।
- सादृश्यवाचक : जिन अव्ययों शब्दों से ‘समानता’ का बोध होता है, उन्हें सादृश्यवाचक सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे—समान, तरह, जैसा, वैसा ही आदि।
- विरोधवाचक : जिन अव्ययों शब्दों से प्रतिकूलता या विरोध का बोध होता है, उन्हें विरोधवाचक सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे—विरुङ, प्रतिकूल, विपरीत, उल्टा इत्यादि।
- सीमावाचक : जिन अव्ययों शब्दों से किसी सीमा’ का पता चलता है, उन्हें सीमावाचक सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे—तक, पर्यन्त, भर, मात्र आदि।
(ग) व्युत्पत्ति या रूप के आधार पर रूप अथवा व्युत्पत्ति के आधार पर सम्बन्धबोधक अव्यय दो प्रकार के होते हैं –
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मूल सम्बन्धबोधक
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यौगिक सम्बन्धबोधक
मूल सम्बन्धबोधक : जो अव्यय किसी दूसरे शब्द के योग से नहीं बनते बल्कि अपने मूलरूप में ही रहते हैं उन्हें मृल सम्बन्धबोधक अव्यय कहत है; जैसे—बिना, समेत, तक आदि।
यौगिक सम्बन्धबोधक : जो अव्यय संज्ञा, विशेषण, क्रिया आदि के योग से बनते हैं, उन्हें यौगिक सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे—पर्यन्त (परि + अन्त)।
(3) समुच्चयबोधक :
दो वाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले शब्द समुच्चयबोधक अव्यय कहे जाते हैं। जैसे :
सूरज निकला और पक्षी बोलने लगे।
यहां ‘और समुच्चयबोधक अव्यय है।
समुच्चयबोधक अव्यय मूलतः दो प्रकार के होते हैं :
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समानाधिकरण
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व्यधिकरण
पुनः समानाधिकरण समुच्चयबोधक के चार उपभेद हैं :
संयोजक | और, एवं, तथा |
विभाजक | या, अथवा, किंवा, नहीं तो। |
विरोध दर्शक | पर, परन्तु, लेकिन, किन्तु, मगर, वरन् |
परिणाम-दर्शक | इसलिए, अतः, अतएव |
व्यधिकरण समुच्चयबोधक के भी चार उपभेद हैं :
कारणवाचक | क्योंकि, जोकि, इसलिए कि |
उद्देश्यवाचक | कि, जो, ताकि |
संकेतवाचक | जो….तो, यदि….तो, यद्यपि….तथापि |
स्वरूपवाचक | कि, जो, अर्थात्, यानी |
(4) विस्मयादि बोधक :
जिन अव्ययों से हर्ष, शोक, घृणा, आदि भाव व्यंजित होते हैं तथा जिनका संबंध वाक्य के किसी पद से नहीं होता, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं, जैसे –
हाय ! वह चल बसा ।।
इस अव्यय के निम्न उपभेद है :
हर्षबोधक | वाह, आह, धन्य, शाबाश |
शोकबोधक | हाय, आह, त्राहि-त्राहि |
आश्चर्यबोधक | ऐं, क्या, ओहो, हैं |
स्वीकारबोधक | हाँ, जी हाँ, अच्छा, जी, ठीक। |
अनुमोदनबोधक | ठीक, अच्छा, हाँ-हाँ। |
तिरस्कारबोधक | छिः, हट, धिक, दूर। |
सम्बोधनबोधक | अरे, रे, जी, हे, अहो |
निपात : मूलतः निपात का प्रयोग अव्ययों के लिए होता है। इनका कोई लिंग, वचन नहीं होता। निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द या पूरे वाक्य को श्रव्य भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं होते। निपात का कार्य शब्द समूह को बल प्रदान करना भी है। निपात कई प्रकार के होते हैं। जैसे –
स्वीकृतिबोधक | हाँ, जी, जी हाँ। |
नकारबोधक | जी नहीं, नहीं । |
निषेधात्मक | मत |
प्रश्नबोधक | क्या |
विस्मयबोधक | काश |
तुलनाबोधक | सा |
अवधारणाबोधक | ठीक, करीब, लगभग, तकरीबन |
आदरबोधक | जी |
अव्यय का पद परिचय (Parsing of Indeclinables):
वाक्य में अव्यय का पद परिचय देने के लिए अव्यय, उसका भेद, उससे संबंध रखने वाला पद—इतनी बातों का उल्लेख करना चाहिए। जैसे –
वह धीरे-धीरे चलता है।
धीरे-धीरे-अव्यय, क्रिया विशेषण, रीतिवाचक, किस की विशेषता बताने वाला।