उत्तराखण्ड राज्य के प्रतीक चिन्ह/Uttarakhand Rajya Ke Pratik Chinha

उत्तराखण्ड राज्य के प्रतीक चिन्ह / Uttarakhand Rajya ke Pratik Chinha

  • राज्य चिन्ह :- गोलाकार मुहर में तीन पर्वतों की श्रंखला मे ऊपर अशोक की लाट तथा नीचे गंगा की लहरों को दर्शाया है।
  • राज्य पशु :- कस्तुरी मृग
  • वैज्ञानिक नाम :- Moschus Chrysogaster
  • राज्य पक्षी :- मोनाल
  • वैज्ञानिक नाम :- Lophophorus Impejanus
  • राज्य वृक्ष :- बुरांश
  • वैज्ञानिक नाम :- Rhododendron Arboreum
  • राज्य पुष्प :- ब्रह्म कमल
  • वैज्ञानिक नाम :- Saussurea Obvallata
  • राज्य खेल :- फुटबाल (2011)
  • राज्य गीत :- उत्तराखण्ड देवभूमि, मातृभूमि, शत-शत वंदन अभिनंदन ( हेमन्त बिष्ट द्वारा रचित फरवरी, 2016)
  • राज्य तितली :- कॉमन पीकॉक (2016)
  • राज्य वाध्य :- ढ़ोल (2015)

गठनोपरान्त सन 2001 में प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के लिए जिन प्रतीक चिन्हों का निर्धारण किया गया उनका संक्षिप्त वर्णन अधोलिखित हैं

राज्य चिन्ह-

शासकीय कार्यों के लिए स्वीकृत राज्य चिन्ह में उत्तराखण्ड के भौगोलिक स्वरूप की झलक मिलती है। इस चिन्ह में एक गोलाकार मुद्रा में तीन पर्वत चोटियों की श्रृंखला और उसके नीचे गंगा की 4 लहरों को दर्शाया गया है। बीच में स्थित चोटी अन्य दोनों चोटियों से ऊँचा है और उसके मध्य में अशोक का लाट अंकित है। अशोक के लाट के नीचे मुण्डकोपनिषद से लिया गया वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ लिखा है।

राज्य-पुष्य-

मध्य हिमालयी क्षेत्र में 4800 से 6000 मीटर की ऊँचाई पर पाये जाने वाले पुष्प ब्रह्मकमल को उत्तराखण्ड सरकार ने राज्य-पुष्प घोषित किया है। यह ऐसटेरसी कुल का पौधा है।

इसका वैज्ञानिक नाम सोसूरिया अबवेलेटा है।

उत्तराखण्ड में इसकी कुल 24 और पूरे विश्व में 210 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। सोसूरिया ग्रार्मिनिफोलिया (फेनकमल), सोसूरिया लप्पा, सोसूरिया सिमेसोनिया तथा सोसूरिया ग्रासोफिफेरा (कस्तूरा कमल) उत्तराखण्ड में पायी जाने वाली इसकी प्रमुख प्रजातियाँ हैं।

ब्रह्मकमल, फेनकमल तथा कस्तूरा कमल के पुष्प बैगनी रंग के होते हैं।

  • उत्तराखण्ड के फूलों की घाटी, केदारनाथ, शिवलिंग बेस, पिंडारी ग्लेशियर आदि क्षेत्रों में यह पुष्प बहुतायत में पाया जाता है। स्थानीय भाषा में इसे ‘कौंल पद्म’ कहा जाता है।
  • इस पुष्प का उल्लेख वेदों में भी मिलता है। महाभारत के वनपर्व में इसे ‘सौगन्धिक पुष्प’ कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस पुष्प को केदारनाथ स्थित भगवान शिव को अर्पित करने के बाद विशेष प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है।
  • ब्रह्मकमल के पौधों की ऊँचाई 70-80 सेमी होती है। इसमें जुलाई से सितम्बर तक मात्र तीन माह तक फूल खिलते हैं। बैगनी रंग का इसका पुष्प टहनियों में नहीं, बल्कि पीले पत्तियों से निकले कमल पात में पुष्प-गुच्छ के रूप में खिलता है। जिस समय इसके फूल खिलते हैं उस समय वहाँ का पूरा वातावरण सुगन्ध से भर जाता है।

राज्य-पक्षी-

हिमालय के मयूर के नाम से प्रसिद्ध मोनाल को राज्य-पक्षी घोषित किया गया है। पक्षी लगभग सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में 2500 से 5000 मीटर के ऊँचाई वाले घने जंगलों में पायी जाती है।

मोनाल तथा डफिया एक ही प्रजाति के पक्षी हैं लेकिन मोनाल मादा पक्षी है और डफिया नर। ध्यातव्य है कि हिमाचल का राज्य पक्षी और नेपाल का राष्ट्रीय भी मोनाल ही है।

मोनाल का वैज्ञानिक नाम लोफोफोरस नैनस है। इपेलेस, स्केलेटरी, ल्यूरी, तथा फोरसएन्स आदि इसकी चार मुख्य प्रजातियां हैं।

  • उत्तराखण्ड, कश्मीर, असम तथा नेपाल में स्थानीय भाषा में इस पक्षी को मन्याल या मुनाल के नाम से जाना जाता है।
  • नीले, काले, हरे आदि रंगों के मिश्रण वाले इस पक्षी की पूँछ हरी होती है। मोर की तरह इसके नर के सिर पर रंगील कलगी होती है। यह पक्षी अपना घोंसला नहीं बनाती अपितु किसी चट्टान या पेड़ के छिद्र में अण्डे देती है। वनस्पति, कीड़े-मकोडे, आलू आदि मोनाल के प्रिय भोजन हैं। इनमें भी आलू विशेष प्रिय है। आलू की फसल को यह बहुत नुकसान पहुँचाती हैं।
  • मांस और खाल के लिए मोनाल का शिकार अधिक होता है, जिससे इनकी संख्या दिनोदिन घट रही है।

राज्य पशु-

उत्तराखण्ड सरकार ने वनाच्छादित हिमशिखरों पर 3600 से 4400 मी. की ऊंचाई के मध्य पाये जाने कस्तूरी मृग को राज्य-पशु घोषित किया है। अबैध शिकार के कारण विलुप्त होने के कगार पर पहुँच रहे इस प्रजाति के मृग राज्य के केदारनाथ, फूलों की घाटी, उत्तरकाशी तथा पिथौरागढ़ जनपद के 2 से 5 हजार मीटर की ऊँचाई पर स्थित जंगलों में पाये जाते हैं।

यहाँ इस मृग की चार प्रजातियाँ पायी जाती है। ध्यातव्य है कि कस्तूरी वाले मृग उत्तराखण्ड के अलावा कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा सिक्किम आदि राज्यों में भी पाये जाते हैं।

इस मृग का वैज्ञानिक नाम मास्कस काइसोगाँस्टरहै। इसे हिमालयन मस्क डियर के नाम से भी जाना जाता है।

  • इस मृग का रंग भूरा होता है जिस पर काले-पीले धब्बे पाये जाते हैं। इसके एक पैर में चार खुर होते हैं। नर मृग की पूँछ छोटी और बाल रहित होती है। इनकी ऊँचाई लगभग 20 इंच और वजन 10 से 20 किग्रा होती है। इनकी घाण और श्रवण शक्ति बहुत तेज होती हैं ।
  • आत्मरक्षा के लिए इनमें सींग की बजाय दो बड़े-बड़े दांत पाये जाते हैं जो बाहर की ओर निकले होते हैं। इनकी औसत आयु लगभग 20 वर्ष होती है।
  • मादा मृग की गर्भधारण अवधि 6 माह होती है और एक बार में प्रायः एक ही मृग का जन्म होता है।
  • कस्तूरी केवल नर मृग में पाया जाता है। जिसका निर्माण एक वर्ष से अधिक आयु के मृग के जननांग के समीप स्थित ग्रन्थि से स्रावित द्रव के नाभि के पास एक गाठनुमा थैली में एकत्र होने से होता है। इसी गाँठ का आपरेशन कर गांढ़े द्रव के रूप में कस्तूरी प्राप्त किया जाता है। एक मृग से एक बार में सामान्यतया 30 से 45 ग्राम तक कस्तूरी प्राप्त की जाती है और इससे 3-3 वर्ष के अंतराल पर कस्तूरी प्राप्त की जा सकती है।
  • 1972 में तत्कालीन उ.प्र. सरकार द्वारा चमोली के केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के अन्तर्गत 2 वर्ग किमी क्षेत्र में कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गई है।
  • कस्तूरी एक जटिल प्राकृतिक रसायन है, जिसमें अद्वितीय सुगंध होती है। इसका उपयोग सुगंधित सामग्रियों के अलावा दमा, निमोनिया, हृदय रोग, टाइफाइड, मिरगी तथा ब्रांकायूरिस आदि रोगों के औषधियों के निर्माण में किया जाता है।
  • कस्तूरी की मांग एवं मूल्य अधिक होने के कारण इनका अवैध शिकार अधिक होता हैं जिससे इनकी संख्या और लिंग अनुपात में तेजी से गिरावट आ रही है। यद्यपि सरकार द्वारा इनके संबर्द्धन और संरक्षण के लिए 1972 से ही अधोलिखित प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन कोई विशेष सफलता नही मिल पा रही है।
  • 1977 में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई है।
  • 1986 में पिथौरागढ़ में अस्कोट अभ्यारण्य की स्थापना की गई है।
  • 1982 में चमोली जिले के काँचुला खर्क में एक कस्तूरी मृग प्रजनन एवं संरक्षण केन्द्र की स्थापना की गई है।
  • राज्य की वन्य जीव गणना 2005 के अनुसार कस्तूरी मृगों की संख्या 274 (2003 में) से बढ़कर 279 हो गई हैं।

राज्य-वृक्ष-

बसन्त के मौसम में अपने रंगबिरंगे फूलों से उत्तराखण्ड के प्राकृतिक सौन्दर्य को और अधिक निखार देने वाले सदाबहार वृक्ष बुराँस को राज्य वृक्ष घोषित किया गया है।

इसका वानस्पतिक नाम रोडोडेन्ड्रान अरबोरियम है।

यह विशुद्ध रूप से एक पर्वतीय वृक्ष है जिसे मैदान में नही उगाया जा सकता है।

  • 1500 से 4000 मी. की ऊँचाई तक मिलने वाले बुरॉस के फूलों का रंग चटख लाल होता है। इससे ऊपर बढ़ने पर फूलों का रंग क्रमशः गहरा लाल और हल्का लाल मिलता है। 11 हजार फुट की ऊँचाई पर सफेद रंग के बुरॉस पाए जाते हैं।
  • बुरॉस का फूल मकर संक्रांति के बाद गर्मी बढ़ने के साथ धीरे-धीरे खिलना शुरू होता है और बैसाखी तक पूरा खिल जाता है। उसके बाद गर्मी के बढ़ जाने के कारण इसके फूल सूखकर गिरने लगते हैं।
  • औषधीय गुणों से युक्त बुराँस के फूलों का जूस हृदय रोग के लिए बहुत लाभकारी है। इसके फूलों से रंग भी बनाया जाता है।
  • बुरॉस वृक्षों की ऊँचाई 20 से 25 फीट होती है। इसकी लकड़ी बहुत मुलायम होती है। जिसका ज्यादातर उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है। इसके पत्ते मोटे होते हैं जिससे खाद बनाया जाता है।
  • बुरॉस के अवैध कटान के कारण वन अधिनियम 1974 में इसे संरक्षित वृक्ष घोषित किया है लेकिन इसके बाद भी बुरॉस वृक्ष का संरक्षण नहीं हो पा रहा है।

uttarakhand ka rajya geet kya hai

उत्तराखण्ड देवभूमि, मातृभूमि, शत-शत वंदन अभिनंदन ( हेमन्त बिष्ट द्वारा रचित फरवरी, 2016)

1 thought on “उत्तराखण्ड राज्य के प्रतीक चिन्ह/Uttarakhand Rajya Ke Pratik Chinha”

  1. thankyou so much sir for sharing me this information, i’m just seeking this information on many website , but your are best so…thanks once again. mera nam akanksha from lucknow

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