परमार वंश (Parmar vansh) से संबन्धित महत्वपूर्ण प्रश्न
- परमार वंश (Parmar Vansh) का आदिपुरुष / संस्थापक था – कनकपाल
- ‘गढ़वाल एन्शियण्ट एण्ड मौडर्न’ प्स्तक के लेखक थे – पातीराम
- ‘पुराना दरबार’ नमक राजप्रसाद स्थित है – टिहरी में
- ‘सभासार’ नामक ग्रंथ के लेखक थे – सुदर्शनशाह
- गढ़राज्य में भाटों द्वारा रचित गीत कहलाते है – पवाड़ा या पैवाड़ा
- ‘भारतीय लोक साहित्य’ पुस्तक के लेखक हैं – श्याम प्रसाद
- ‘गढ़वाल की दिवंगत विभूतियाँ’ के लेखक हैं – भक्त दर्शन सिंह
- ‘मन्दाकिनी’ नामक पवित्र कुण्ड स्थित है – माउन्ट आबू में
- ‘गढ़वाल का इतिहास’ के लेखक हैं – पं. हरीकृष्ण रतुड़ी
- ‘गढ़वाल वर्णन’ के लेखक हैं – पं. हरीकृष्ण रतुड़ी
- ‘गढ़वाल जाति प्रकाश’ के लेखक हैं – बालकृष्ण भट्ट
- ‘कुमाऊँ का इतिहास’ के लेखक हैं – बद्रीदत्त पाण्डेय
- 1358 में गढ़राज्य की राजधानी ‘चाँदपुर गढ़ी’ से बदलकर श्रीनगर की गई – राजा अजयपाल के शासन काल में
- मनोदय (ज्ञानोदय) पुस्तक के रचयिता थे – कवि भरत
- गोरखनाथ पंथ के सन्यासी ‘सरनाथ’ का आवास स्थल था – देवलगढ़ में
- ‘शाह’ की उपाधि धारण करने वाला प्रथम गढ़वाल नरेश था – बलभद्र शाह
- ‘नक कट्टी रानी’ के नाम से प्रसिद्ध रानी थी – रानी कर्णवती
- मुगल शहजादा ‘दादा शिकोह’ के पुत्र ‘सुलेमान शिकोह’ को आश्रय दिया – पृथ्वीपति शाह ने
- ‘गढ़ गीता संग्राम’ या ‘गणिका नाटक’ ग्रन्थ के लेखक थे – मोलाराम
- टिहरी के परमार वंश के 55वें राजा का नाम है : सुदर्शन शाह